सामान्यतया, लोकसभा की बैठक का पहला घंटा प्रश्नों के लिए होता है और उसे प्रश्नकाल कहा जाता है। इसका संसद की कार्यवाही में विशेष महत्व है। प्रश्न पूछना सदस्यों का जन्मजात और उन्मुक्त संसदीय अधिकार है। प्रश्नकाल के दौरान सदस्य प्रशासन और सरकार के कार्यकलापों के प्रत्येक पहलू पर प्रश्न पूछ सकते हैं। चूंकि सदस्य प्रश्नकाल के दौरान प्रासंगिक जानकारी प्राप्त करने का प्रयास करते हैं इसलिए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्यों संबंधी सरकारी नीतियों पर पूरा ध्यान केन्द्रित होता है।
प्रश्नकाल के दौरान सरकार को कसौटी पर परखा जाता है और प्रत्येक मंत्री, जिसकी प्रश्नों का उत्तर देने की बारी होती है, को खड़े होकर अपने अथवा अपने प्रशासनिक कृत्यों में भूल चूक के संबंध में उत्तर देना होता है। प्रश्नकाल के माध्यम से सरकार राष्ट्र की नब्ज को तुरन्त पहचान लेती है और तदनुसार अपनी नीतियों और कृत्यों को उसके अनुरूप ढाल लेती है। संसद में प्रश्नों के माध्यम से सरकार लोगों से संपर्क रख पाती है क्योंकि इसके माध्यम से ही सदस्य प्रशासन से संबंधित मामलों में लोगों की समस्याओं को प्रस्तुत कर पाते हैं। प्रश्नों से मंत्रालय अपनी नीति और प्रशासन के बारे में लोकप्रियता का अनुमान लगा लेते हैं। प्रश्नों से मंत्रियों के ध्यान में ऐसी कई गलतियां सामने आ जाती हैं जिनपर शायद ध्यान नहीं जाता। कई बार जब उठाया गया मामला इतना गंभीर हो कि वह लोगों के दिमाग को आंदोलित कर दे और वह व्यापक लोक महत्व का हो तो प्रश्नों के माध्यम से किसी आयोग की नियुक्ति, न्यायालयी जांच अथवा कोई विधान भी बनाना पड़ जाता है।
प्रश्न काल संसदीय कार्यवाही का एक रोचक भाग है। यद्यपि प्रश्न में मुख्यतः जानकारी मांगी जाती है और एक विषय विशेष पर तथ्यों की जानकारी प्राप्त करने का प्रयत्न किया जाता है फिर भी कई बार प्रश्न पूछने वाले सदस्यों और उत्तर देने वाले मंत्रियों के बीच जीवंत और द्रुत हाजिरजवाबी देखने को मिलती है। कई बार यह हाजिरजवाबी व्यंग्य और विनोद से परिपूर्ण होती है। इसलिए प्रश्नकाल के दौरान दर्शक दीर्घाएं और प्रेस दीर्घाएं खचाखच भरी रहती हैं।