प्रश्नों की ग्राह्यता को शासित करने वाली शर्तें लोक सभा के प्रक्रिया तथा कार्य संचालन नियमों के नियम 41 से 44 में दी गई हैं। इन उपबधों के अलावा प्रश्न की ग्राह्यता, अध्यक्ष लोक सभा के निदेशों के निदेश 10क, पूर्व उदाहरण, अध्यक्ष, के निर्णय व टिप्पणियों, सुस्थापित संसदीय पद्धतियों, प्रचलन तथा रूढियों के अनुसार भी निर्धारित की जाती है।
सांविधिक निगमों तथा लिमिटेड कंपनियों से संबंधित प्रश्न, जिनमें सरकार का वित्तीय अथवा नियंत्रणकारी हित हैं को उनकी गुणवत्ता के आधार पर जाँचा जाता है तथा उनकी ग्राह्यता सामान्यता निम्नलिखित तरीके से नियमित की जाती है:
(एक) जहाँ प्रश्न नीतिगत के मामले से संबंधित हो या अधिनियम का सन्दर्भ किया गया हो, अथवा मंत्री द्वारा चूक के कृत्य से संबंधित हो अथवा इसमें लोकहित का मामला उठाया गया हो, यद्यपि यह दैनंदिन प्रशासन के मामले से संबंधित अथवा किसी व्यक्ति विशेष का मामला हो, तो इसे साधारणतया ग्राह्य कर लिया जाता है।
(दो) यदि किसी प्रश्न, जिसमें सांख्यिकी या विवरणात्मक स्वरूप की सूचना माँगी गई हो, तो इसे सामान्यतया अतारांकित प्रश्न के रूप में ग्राह्य किया जाता है; और
(तीन) यदि कोई प्रश्न स्पष्ट रूप से दैनंदिन प्रशासन से संबंधित हो तथा जिससे मंत्रालयों और निगमों के कार्य में अनावश्यक रूप से वृद्धि हो जिससे कोई परिणाम प्राप्त होने की आशा न हो, उसे सामान्यता ग्राह्य नहीं किया जाता है।
प्रश्नों की ग्राह्यता का निर्धारण करने के लिए सामान्यतः पालन किए जाने वाले लोक सभा के प्रक्रिया और कार्य-संचालन नियमों के नियम तथा लोक सभा अध्यक्ष द्वारा निदेश के निदेशों का वर्णन नीचे विस्तार से किया गया है-
लोक सभा के प्रक्रिया तथा कार्य संचालन नियम
41. (1) उपनियम (2) के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, लोक-महत्व के किसी ऐसे विषय पर जानकारी प्राप्त करने के लिए प्रश्न पूछा जा सकेगा जो उस मंत्री के विशेष संज्ञान में हो, जिसे वह संबोधित किया गया हो।
(2) प्रश्न पूछने का अधिकार निम्नलिखित शर्तों के अधीन है, अर्थात्:-
(एक) यह स्पष्ट और सूक्ष्म रूप से अभिव्यक्त किया जाएगा तथा इतना अधिक सामान्य नहीं होगा कि उसका कोई विशिष्ट उत्तर न दिया जा सके अथवा सूचक प्रश्न के रूप में नहीं होगा।
(दो) उसमें कोई ऐसा नाम या कथन नहीं होगा जो प्रश्न को सुबोध बनाने के लिए सर्वथा आवश्यक न हो;
(तीन) यदि उसमें कोई कथन हो, तो सदस्य को उस कथन की परिशुद्धता के लिए उत्तरदायी होना पड़ेगा;
(चार) उसमें प्रतर्क, अनुमान व्यंग्यात्मक पद, अभ्यारोप विशेषण या मानहानिकारक कथन नहीं होंगे;
(पांच) उसमें राय प्रकट करने या किसी अमूर्त विधि संबंधी प्रश्न या किसी काल्पनिक प्रस्थापना के समाधान के लिए नहीं पूछा जायेगा;
(छः) उसमें किसी व्यक्ति के पदेन या सार्वजनिक हैसियत के अतिरिक्त उसके चरित्र या आचरण के बारे में नहीं पूछा जायेगा;
(सात) उसमें साधारणतया 150 से अधिक शब्द नहीं होंगे;
(आठ) वह उस विषय से संबंधित नहीं होगा जो मुख्यतया भारत सरकार का विषय न हो;
(नौ) उसमें किसी समिति की ऐसी कार्यवाही के बारे में नहीं पूछा जायेगा जो समिति के प्रतिवेदन द्वारा सभा के सामने न रखी गई हो;
(दस) उसमें किसी ऐसे व्यक्ति क चरित्र पर या आचरण पर अभ्युक्ति नहीं की जायेगी जिसके आचरण पर मूल प्रस्ताव के द्वारा ही आपत्ति की जा सकती हो;
(ग्यारह) उसमें व्यक्तिगत रूप का दोषारोपण नहीं किया जायेगा और न वह दोषारोपण ध्वनित होगा;
(बारह) उसमें ऐसी नीति के प्रश्न नहीं उठाये जायेंगे जो इतनी विस्तीर्ण हो कि प्रश्न के उत्तर की सीमा के भीतर न आ सके;
(तेरह) उसमें ऐसे प्रश्नों की सारतः पुनरूक्ति नहीं की जायेगी जिनके उत्तर पहले दिये जा चुके हों या जिनका उत्तर देना अस्वीकार कर दिया गया हो;
(चौदह) उसमें तुच्छ विषयों पर जानकारी नहीं मांगी जायेगी;
(पन्द्रह) उसमें साधारणतया विगत इतिहास के विषयों पर जानकारी नहीं मांगी जायेगी;
(सोलह) उसमें ऐसी जानकारी नहीं मांगी जायेगी जो प्राप्त दस्तावेजों या साधारण निर्देश ग्रन्थों में दी गई हो;
(सत्रह) उसमें ऐसे निकायों या व्यक्तियों के नियंत्रण के अन्तर्गत विषय नहीं उठाये जायेंगे जो मुख्यतया भारत सरकार के प्रति उत्तरदायी न हो;
(अठारह) उसमें किसी ऐसे विषय पर जानकारी नहीं मांगी जायेगी जो भारत के किसी भाग में क्षेत्राधिकार रखने वाले किसी न्यायालय के न्याय-निर्णयन के अन्तर्गत हो;
(उन्नीस) उसका किसी ऐसे विषय से संबंध नहीं होगा जिससे मंत्री का पदेन कोई सरोकार न हो;
(बीस) उसमें किसी मित्र देश के प्रति अविनयपूर्ण निर्देश नहीं होगा;
(इक्कीस) उसमें ऐसे विषयों के बारे में जानकारी नहीं मांगी जाएगी जो गोपनीय स्वरूप के हों जैसे मंत्रिमंडल समितियों की रचना, मंत्रिमंडल में की जाने वाली चर्चाएं या राष्ट्रपति को किसी ऐसे विषय में दी गई मंत्रणा जिसके संबंध में जानकारी प्रकट न करने का संवैधानिक, संविहित या रूढ़िगत दायित्व हो;
(बाईस) उसमें साधारणतया ऐसे विषयों पर जानकारी नहीं मांगी जायेगी जो किसी संसदीय समिति के विचाराधीन हों; और
(तेईस) उसमें साधारणतया ऐसे विषयों के बारे में नहीं पूछा जायेगा जो कोई न्यायिक या अर्धन्यायिक कृत्य करने वाली किसी संविहित न्यायाधिकरण या संविहित प्राधिकारी के या किसी विषय की जांच या अनुसन्धान करने के लिए नियुक्त किसी आयोग या जांच न्यायालय के सामने विचारधीन हो किन्तु उसमें जांच की प्रक्रिया या विषय या प्रक्रम में संबंधित विषयों की ओर निर्देश किया जा सकेगा, यदि उससे न्यायाधिकरण या आयोग या जांच-पड़ताल द्वारा उस विषय के विचार किये जाने पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की सम्भावना न हो।
भारत सरकार तथा राज्य सरकारों के बीच पत्र व्यवहार के विषयों पर प्रश्न
42. जिन विषयों पर भारत सरकार और किसी राज्य सरकार के बीच पत्र-व्यवहार हो रहा हो या हो चुका हो, उसके बारे में तथ्य विषयों को छोड़कर, कोई प्रश्न जायेगा, और उत्तर तथ्य कथन तक ही समिति होगा।
अध्यक्ष प्रश्नों की ग्राह्यता का विनिश्चय करेगा
43.(1) अध्यक्ष विनिश्चित करेगा कि कोई प्रश्न या उसका कोई भाग इन नियमों के अन्तर्गत ग्राह्य है अथवा नहीं और वह कोई प्रश्न या उसका कोई भाग स्वीकृत कर सकेगा जो उसकी राय में प्रश्न पूछने के अधिकार का दुरुपयोग हो या सभा की प्रक्रिया मे बाधा डालने या उस पर प्रतिकूल प्रभाव डालने के लिए आयोजित हो या इन नियमों का उल्लंघन करता हो।
(2) नियम 38 के उपबन्धों के अधीन रहते हुए अध्यक्ष निदेश दे सकेगा कि किसी प्रश्न को प्रश्न-सूची में उत्तर के लिए सदस्य द्वारा अपनी सूचना में उल्लिखित तिथि के बाद की किसी तिथि को रखा जाए, यदि उसकी राय हो कि यह विनिश्चय करने के लिये कि प्रश्न ग्राह्य है या नहीं अधिक समय की आवश्कता है।
अध्यक्ष विनिश्चय करेगा कि कोई प्रश्न तारांकित माना जाए या अतारांकित
44. यदि अध्यक्ष की राय में मौखिक उत्तर के लिए रखा गया कोई प्रश्न ऐसे स्वरूप का है कि उसका लिखित उत्तर अधिक उचित होगा तो अध्यक्ष निदेश दे सकेगा कि ऐसा प्रश्न लिखित उत्तर के लिए प्रश्न-सूची में रख दिया जाएः
परन्तु अध्यक्ष, यदि ठीक समझे तो, मौखिक उत्तर के लिए प्रश्न की सूचना देने वाले सदस्य से मौखिक उत्तर चाहने के कारणों को संक्षेप में बताने के लिए कह सकेगा और उन पर विचार करने के बाद निदेश दे सकेगा कि प्रश्न लिखित उत्तर के लिए प्रश्न-सूची में सम्मिलित किया जाए।
लोक सभा अध्यक्ष द्वारा निदेश
10क. नियम 41 में उल्लिखित ग्राह्यता की शर्तों के अतिरिक्त प्रश्न निम्न किसी भी कारण के आधार पर अग्राह्य होगाः
(एक) यदि उसमें ऐसे मामलों की बाबत जानकारी मांगी गई हो जिनसे विखण्डनवादी और अलगाववादी प्रवृत्तियों को प्रोत्साहन मिलता हो और देश की एकता और अखण्डता कमजोर होती हो;
(दो) यदि वह दिन-प्रति-दिन के प्रशासन से संबंधित हो अथवा उससे किसी एक अथवा कुछ व्यक्तियों के हितों का संवर्धन होता हो;
(तीन) यदि वह किसी ऐसे मामले से संबंधित हो जो मुख्य रूप से मुख्य निर्वाचन आयुक्त, भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक, न्यायालयों और ऐसी अन्य संस्थाओं के क्षेत्राधिकार में आता हो;
(चार) यदि वह मंत्रियों द्वारा प्राप्त ऐसी याचिकाओं और ज्ञापनों से संबंधित है जो लोक महत्व के नहीं है;
(पांच) यदि वह किसी ऐसे मामले से संबंधित हो, जिस पर किसी अन्य देश की सरकार के साथ बातचीत चल रही हो और उसक प्रकटन से राष्ट्र के अहित में बातचीत प्रभावित होती हो; और
(छः) यदि वह अध्यक्ष के क्षेत्राधिकार के भीतर आने वाले किसी मामले से संबंधित हो।