संसद भवन में भित्ति चित्र
जैसे ही कोई व्यक्ति संसद भवन में प्रवेश
करता है तो वह भूतल पर बाह्य गोलाकार गलियारे में भित्ति चित्रों से सुशोभित दीवारों
को देखकर मंत्रमुग्ध हो जाता है । ये चित्र भारत के प्रतिष्ठित कलाकारों की कलाकृतियां
हैं जिनमें वैदिक काल से लेकर ब्रिटिश काल से होते हुए वर्ष 1947 में स्वातंत्र्य प्राप्ति
तक के इस देश के लम्बे इतिहास के कुछ दृश्य दर्शाए गए हैं ।
सार्वजनिक स्थलों, मन्दिरों और राजमहलों
आदि को चित्रकला और भित्तिचित्रों से सजाने की प्रथा अनादि काल से शुरू होकर हम तक
पहुँची है । ये कलाकृतियाँ तत्कालीन समाज में रहने वाले व्यक्तियों के जीवन, संस्कृति
और परम्पराओं का प्रतीकात्मक रूप हैं । अब हमारे लिए ये कलाकृतियां विगत में भारत में
विकसित महान सभ्यताओं और साम्राज्यों तथा महान राजाओं और योद्धाओं और ऋषियों जिन्होंने
अपने प्रयासों से हमारे इस देश को गौरवान्वित किया है, का स्मरण दिलाती है । अजन्ता,
एलोरा और एलिफेंटा गुफाएं सदियों पहले देश में प्रफुल्लित अवस्था में रही महान कलाओं
की याद दिलाने वाला जीवंत उदाहरण हैं । इस तरह यह स्वाभाविक था कि आधुनिक भारत के स्रष्टाओं
ने लोकतंत्र के आधुनिक मंदिर अर्थात संसद भवन को इस देश के इतिहास के महान पलों को
दर्शाने वाले चित्रों से सजाना उचित समझा और इस तरह कुछ हद तक "भारत" की महान गरिमा
को पुनरुज्जीवित करने का प्रयास किया । यह योजना लोक सभा के प्रथम अध्यक्ष स्वर्गीय
श्री जी.वी.मावलंकर के दिमाग की उपज थी । वर्ष 1951 में लोक सभा अध्यक्ष (श्री जी.वी.
मावलंकर) की अध्यक्षता में प्रमुख संसद सदस्यों, प्रतिष्ठित विद्वानों, पुरातत्ववेत्ताओं,
इतिहासकारों को शामिल करके एक आयोजना समिति गठित की गई । समिति ने संसद भवन के भूतल
के गलियारे को अनुमानतः 3 लाख लागत पर 125 पैनलों (आकार 11.9" x 4.11/2") और 46 मोटिफ़ों
से सजाने की एक विस्तृत योजना तैयार की । संशोधित योजना के अनुसार संसद भवन के भूतल
के गलियारे को 59 पैनलों से सजा दिया जाएगा । योजना का निष्पादन करने की दृष्टि से
वर्ष 1954 में प्रसिद्ध कलाकारों, इतिहासकारों, पुरातत्ववेत्ताओं और पुरातत्व रसायनज्ञों
को सम्मिलित कर कलाकार उप-समिति नियुक्त की गई । इस उप-समिति ने देश में चुनिंदा कलाकारों
से पैनलों पर चित्रकारी कराने के लिए एक विस्तृत और व्यवस्थापरक प्रक्रिया निर्धारित
की ।
भित्तियों की चित्रकारी के लिए चयनित कलाकारों
को अलग-अलग क्षेत्रों में बाँट दिया गया है और प्रत्येक क्षेत्र एक अवैतनिक कलाकार
पर्यवेक्षक के प्रभाराधीन है जो कलाकार उप-समिति का एक सदस्य भी है । कलाकार पर्यवेक्षक
अपने-अपने क्षेत्र में कलाकारों के कार्य में मार्गदर्शन और पर्यवेक्षण करते हैं ।
प्रत्येक पैनल तीन चरणों से गुजरता है अर्थात् मैसोनाइट बोर्ड पर कलर स्कैच, पेन्सिल
कार्टून और अंतिम चित्रकारी । कार्य को हर चरण पर कलाकार पर्यवेक्षक और कलाकार उप-समिति
विशेषकर उप-समिति के इतिहासकार सदस्यों द्वारा अनुमोदित किए जाने की व्यवस्था थी ।
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