भारत का समय आपका समय मंगलवार, जनवरी 31, 2023
1.आधुनिक युग में संसद को न केवल विभिन्न और जटिल प्रकार का, बल्कि मात्रा में भी अत्यधिक कार्य करना पड़ता है। संसद के पास इस कार्य को निपटाने के लिए सीमित समय होता है। इसलिए संसद उन सभी विधायी तथा अन्य मामलों पर, जो उसके समक्ष आते हैं, गहराई के साथ विचार नहीं कर सकती। अत: संसद का बहुत सा काम सभा की समितियों द्वारा निपटाया जाता है, जिन्हें संसदीय समितियां कहते हैं। संसदीय समिति से तात्पर्य उस समिति से है, जो सभा द्वारा नियुक्त या निर्वाचित की जाती है अथवा अध्यक्ष द्वारा नाम-निर्देशित की जाती है और अध्यक्ष के निदेशानुसार कार्य करती है तथा अपना प्रतिवेदन सभा को या अध्यक्ष को प्रस्तुत करती है और समिति का सचिवालय लोक सभा सचिवालय द्वारा उपलब्घ कराया जाता है।
2.अपनी प्रकृति के अनुसार संसदीय समितियां दो प्रकार की होती हैं: स्थायी समितियां और तदर्थ समितियां। स्थायी समितियां स्थायी एवं नियमित समितियां हैं जिनका गठन समय-समय पर संसद के अधिनियम के उपबंधों अथवा लोक सभा के प्रक्रिया तथा कार्य-संचालन नियम के अनुसरण में किया जाता है। इन समितियों का कार्य अनवरत प्रकृति का होता है। वित्तीय समितियां, विभागों से संबद्ध स्थायी समितियां (डीआरएससी) तथा कुछ अन्य समितियां स्थायी समितियों की श्रेणी के अंतर्गत आती हैं। तदर्थ समितियां किसी विशिष्ट प्रयोजन के लिए नियुक्त की जाती हैं और जब वे अपना काम समाप्त कर लेती हैं तथा अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत कर देती हैं, तब उनका अस्तित्व समाप्त हो जाता है। प्रमुख तदर्थ समितियां विधेयकों संबंधी प्रवर तथा संयुक्त समितियां हैं। रेल अभिसमय समिति, संसद भवन परिसर में खाद्य प्रबंधन संबंधी संयुक्त समिति इत्यादि भी तदर्थ समितियों की श्रेणी में आती हैं।
3. मोटे तौर पर संसदीय समितियों के निम्नलिखित श्रेणियों में रखा जाता है: (क) वित्तीय समितियां, (ख) विभागों से संबद्ध स्थायी समितियां, (ग) अन्य संसदीय स्थायी समितियां, तथा (घ) तदर्थ समितियां।
4. संसदीय समितियों की सदस्यता तथा इनके कार्यकाल नीचे दर्शाए गए हैं: क.वित्तीय समितियां
ख. विभागों से संबद्ध स्थायी समितियां विभागों से संबद्ध स्थायी समितियों की संख्या 24 है जिनके क्षेत्राधिकार में भारत सरकार के सभी मंत्रालय/विभाग आते हैं। इनमें से प्रत्येक समिति में 31 सदस्य होते हैं - 21 लोक सभा से तथा 10 राज्य सभा से जिन्हें क्रमश: लोक सभा के अध्यक्ष तथा राज्य सभा के सभापति द्वारा नाम-निर्दिष्ट किया जाता है। इन समितियों का कार्यकाल एक वर्ष से अनधिक होगा। 24 समितियों के नाम निम्नांकित हैं:- 1.वाणिज्य संबंधी समिति 2.गृह कार्य संबंधी समिति 3.मानव संसाधन विकास संबंधी समिति 4.उद्योग संबंधी समिति 5.विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी, पर्यावरण और वन संबंधी समिति 6.परिवहन, पर्यटन और संस्कृति संबंधी समिति 7.स्वास्थ्य और परिवार कल्याण संबंधी समिति 8.कार्मिक, लोक शिकायत, विधि और न्याय संबंधी समिति 9.कृषि संबंधी समिति 10.सूचना प्रौद्योगिकी संबंधी समिति 11.रक्षा संबंधी समिति 12.ऊर्जा संबंधी समिति 13.विदेशी मामलों संबंधी समिति 14.वित्त संबंधी समिति 15.खाद्य, नागरिक पूर्ति और सार्वजनिक वितरण संबंधी समिति 16.श्रम संबंधी समिति 17.पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस संबंधी समिति 18.रेल संबंधी समिति 19.शहरी विकास संबंधी समिति 20.जल संसाधन संबंधी समिति 21.रसायन और उर्वरक संबंधी समिति 22.ग्रामीण विकास संबंधी समिति 23.कोयला और इस्पात संबंधी समिति 24.सामाजिक न्याय और अधिकारिता संबंधी समिति
इन 24 समितियों में से 8 समितियों (क्रम सं. 1 से 8) को राज्य सभा सचिवालय द्वारा सेवा प्रदान की जाती है तथा 16 समितियों (क्रम सं. 9 से 24) को लोक सभा सचिवालय द्वारा सेवा प्रदान की जाती है।
ग. अन्य स्थायी समितियां
घ.तदर्थ समितियां
कोई भी मंत्री वित्तीय समितियों, विभाग से सम्बद्ध स्थायी समितियों तथा (1) महिलाओं को शक्तियों प्रदान करने संबंधी समिति (2) सरकारी आवश्वासनों संबंधी समिति (3) याचिका समिति (4) अधीनस्थ विधान संबंधी समिति (5) अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के कल्याण संबंधी समिति में निर्वाचित अथवा नाम-निर्देशित किए जाने के लिए पात्र नहीं है।
समितियों के कार्य की सामान्य प्रक्रिया लोक सभा के प्रक्रिया तथा कार्य-संचालन नियम के सामान्य नियम सं. 253 से 286, संसदीय समितियों के संबंध में अध्यक्ष के निदेशों के सामान्य निदेश सं. 48 से 73क, समिति विशेष के आंतरिक नियमों तथा अन्य संबंधित संसदीय अभिसमय तथा प्रथाओं द्वारा अभिशासित होती हैं।
समिति के कार्य
(1) प्राक्कलन समिति
(क) प्राक्कलनों से संबंधित नीति से संगत क्या मितव्ययता, संगठन में सुधार, कार्यकुशलता या प्रशासनिक सुधार किए जा सकते हैं इस संबंध में प्रतिवेदित करना; (ख) प्रशासन में कार्यकुशलता और मितव्ययता लाने के लिए वैकल्पिक नीतियों का सुझाव देना; (ग) प्राक्कलनों में अंतर्निहित नीति की सीमा में रहते हुए धन ठीक ढंग से लगाया गया है या नहीं इसकी जांच करना; और (घ) प्राक्कलन किस रूप में संसद में प्रस्तुत किए जाएंगे इसका सुझाव देना। समिति ऐसे सरकारी उपक्रमों के संबंध में, जो सरकारी उपक्रमों संबंधी समिति को इन नियमों द्वारा अथवा अध्यक्ष द्वारा सौंपे गए हों, अपने कृत्यों का निर्वहन नहीं करती है।
(2) लोक लेखा समिति
भारत सरकार के व्यय को वहन करने के लिए संसद द्वारा अनुदत राशियों का विनियोग दिखाने वाले लेखाओं के विवरण, भारत सरकार के वार्षिक वित्त लेखाओं और सभा के सामने रखे गए ऐसे अन्य लेखाओं, जिन्हें समिति ठीक समझे, की जांच। भारत सरकार के विनियोग लेखे और उन पर नियंत्रक तथा महालेखापरीक्षक के प्रतिवेदन की छान-बीन करते समय समिति को यह सुनिश्चित करना होगा:-
(क) कि लेखाओं में व्यय के रूप में दिखाया गया धन उस सेवा या प्रयोजन के लिए विधिवत उपलब्ध और लगाए जाने योग्य था जिसमें यह लगाया गया है या पारित किया गया है; (ख) कि व्यय उस प्राधिकार के अनुसार है जिसके वह अधीन है; (ग) कि प्रत्येक पुनर्विनियोग सक्षम प्राधिकारी द्वारा निर्मित नियमों के अंतर्गत इस संबंध में किए गए उपबंधों के अनुसार किया गया है।
समिति का यह भी कर्तव्य होगा
(क) कि वह राज्य निगमों, व्यापारिक और विनिर्माण योजनाओं, संस्थाओं एवं परियोजनाओं के आय और व्यय को दर्शाने वाले लेखाओं के विवरण तथा लाभ और हानि लेखाओं के तुलनपत्रों और विवरणों की, जिसे राष्ट्रपति ने तैयार करने की अपेक्षा की हो अथवा जिन्हें विशेष निगम, व्यापारिक या विनिर्माण योजना या संस्था या परियोजना के वित्तपोषण को विनियमित करने वाले सांविधिक नियमों के प्रावधानों के अंतर्गत तैयार किया जाता हो, और उन पर नियंत्रक और महालेखापरीक्षक के प्रतिवेदन की जांच करे। (ख) कि वह स्वायत्त और अर्द्धस्वायत्त निकायों के आय और व्यय को दर्शाने वाले लेखाओं के विवरण तथा भारत के नियंत्रक और महालेखापरीक्षक द्वारा, या तो राष्ट्रपति के निर्देशों अथवा संसद की संविधि के अंतर्गत, की जानेवाली लेखापरीक्षा की जांच करें; और (ग) कि वह उन मामलों में नियंत्रक और महालेखापरीक्षक के प्रतिवेदन पर विचार करे जहां राष्ट्रपति ने किन्हीं प्राप्तियों की लेखापरीक्षा करवाने अथवा भंडारों की लेखाओं की जाचं करवाने की अपेक्षा की हो।
(3) सरकारी उपक्रमों संबंधी समिति
(क) लोक सभा के प्रक्रिया तथा कार्य संचालन नियम की चतुर्थ अनुसूची में उल्लिखित सरकारी उपक्रमों के प्रतिवेदनों और लेखाओं की जांच; (ख) यदि सरकारी उपक्रमों के बारे में भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक की कोई रिपोर्ट हो तो उसकी जांच करना; (ग) सरकारी उपक्रमों की स्वायत्तता और कार्यकुशलता के संदर्भ में; यह जांच करना कि क्या सरकारी उपक्रमों के कार्य समुचित व्यापार सिद्धांतों और विवेकपूर्ण वाणिज्यिक प्रथाओं के अनुरूप चल रहे हैं; और (घ) सरकारी उपक्रमों से संबंधित अन्य ऐसे कार्य करना जो लोक लेखा समिति और प्राक्कलन समिति में निहित हों और जो उपर्युक्त खंडों (क), (ख) और (ग) में सम्मिलित न हों तथा जिन्हें अध्यक्ष द्वारा समय-समय पर समिति को आवंटित किया जाए।
(4) विभागों से सम्बद्ध स्थायी समितियां
13वीं लोक सभा तक, प्रत्येक स्थायी समिति में 45 से अनधिक सदस्य होते थे जिनमें 30 सदस्य लोक सभा अध्यक्ष द्वारा लोक सभा से तथा 15 सदस्य राज्य सभा के सभापति द्वारा राज्य सभा से मनोनीत किए जाते थे। तथापि जुलाई 2004 में विभागों से सम्बद्ध स्थायी समितियों का पुनर्गठन किए जाने के समय से ऐसी प्रत्येक समिति में 31 सदस्य होते हैं जिनमें 21 सदस्य लोक सभा से और 10 सदस्य राज्य सभा से होते हैं।इन समितियों के क्षेत्राधिकार में आनेवाले मंत्रालयों/विभागों के संदर्भ में, इनके कृत्य इस प्रकार होंगे:- (क) अनुदानों की मांगों पर विचार करना: (ख) ऐसे विधेयकों की जांच करना जो सभापति, राज्य सभा अथवा अध्यक्ष, लोक सभा द्वारा, यथास्थिति, सौंपे गए हों; (ग) वार्षिक प्रतिवेदनों पर विचार करना; और (घ) सभा में प्रस्तुत राष्ट्रीय आधारभूत दीर्घावधि नीति संबंधी दस्तावेजों, जो राज्य सभा के सभापति या लोक सभा के अध्यक्ष द्वारा, समिति को सौंपे गए हों, जो भी मामला हो, पर विचार करना। ये समितियां संबंधित मंत्रालयों/विभागों के दिन-प्रतिदिन के प्रशासन के मामलों पर विचार नहीं करतीं। विभागों से सबंद्ध स्थायी समिति प्रणाली, प्रशासन पर संसदीय निगरानी का अभूतपूर्व प्रयास है। इनके कार्यकरण का केंद्र बिंदु होती हैं- कार्यपालिका के क्रियाकलापों की दिशा तय करने वाली दीर्घावधि की योजनाएं, नीतियां, ये समितियां व्यापक नीति निर्माण तथा कार्यपालिका द्वारा दीर्घावधि के राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य की प्राप्ति हेतु आवश्यक दिशा, मार्गदर्शन तथा जानकारी प्रचार कर रही हैं।
(5) कार्य मंत्रणा समिति
यह सिफारिश करना कि सरकार के उन विधायी तथा अन्य कार्यों पर, जिसे अध्यक्ष, सभा के नेता के परामर्श से समिति को सौंपने का निर्देश दे, चर्चा करने के लिए कितना समय नियत किया जाए। समिति स्वयं भी सरकार से सिफारिश करती है कि वह विषय विशेष सभा में चर्चा के लिए प्रस्तुत करे और ऐसी चर्चाओं के लिए समय नियत करने की सिफारिश कर सकती है।
(6) विशेषाधिकार समिति
सभा अथवा उसके किसी सदस्य अथवा किसी समिति के सदस्य के विशेषाधिकार के भंग किए जाने से संबंधित प्रत्येक प्रश्न की जांच करना, जो उसे सभा अथवा अध्यक्ष द्वारा सौंपा जाए। प्रत्येक मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए इस बात का निश्चय करना कि क्या विशेषाधिकार को भंग किया गया है और अपने प्रतिवेदन में इस संबंध में उपयुक्त सिफारिश करना।
(7) सभा की बैठकों से सदस्यों की अनुपस्थिति संबंधी समिति
सभा की बैठकों से अनुपस्थिति की अनुमति प्राप्त करने के लिए सदस्यों के सभी प्रार्थना-पत्रों पर विचार करना और ऐसे प्रत्येक मामले की जांच करना, जिसमें कोई सदस्य 60 दिन या इससे अधिक समय तक बिना अनुमति के सभा की बैठकों में अनुपस्थित रहा हो।
(8) महिलाओं को शक्तियां प्रदान करने संबंधी समिति
(क) राष्ट्रीय महिला आयोग द्वारा प्रस्तुत प्रतिवेदनों पर विचार करना और इस बात की सूचना देना कि संघ राज्य क्षेत्र प्रशासनों सहित केंद्रीय सरकार के अधिकार-क्षेत्र में आने वाले मामलों के संबंध में महिलाओं की स्थिति/दशा सुधारने के लिए केंद्रीय सरकार द्वारा क्या उपाय किए जाने चाहिए; (ख) महिलाओं को सभी मामलों में समानता, उचित दर्जा और प्रतिष्ठा दिलाने हेतु केंद्रीय सरकार द्वारा किए गए उपायों की जांच करना; (ग) महिलाओं के लिए व्यापक शिक्षा तथा विधायी निकायों/सेवाओं और अन्य क्षेत्रों में उनके पर्याप्त प्रतिनिधित्व के लिए केंद्रीय सरकार द्वारा किए गए उपायों की जांच करना; (घ) महिलाओं के लिए कल्याण कार्यक्रमों के कार्यकरण के बारे में सूचित करना; (ङ) समिति द्वारा प्रस्तावित उपायों पर केंद्रीय सरकार तथा संघ राज्य क्षेत्र प्रशासनों द्वारा की गयी कार्यवाही के बारे में सूचित करना; और (च) ऐसे अन्य मामलों की जांच करना, जो समिति को उपयुक्त लगे अथवा जो इसे सभा या अध्यक्ष द्वारा तथा राज्य सभा या राज्य सभा के सभापति द्वारा विशेष रूप से भेजे जाएं।
(9) महिलाओं को शक्तियां प्रदान करने संबंधी समिति
मंत्रियों द्वारा समय-समय पर दिए गए आश्वासनों, वचनों और किए गए प्रतिज्ञानों आदि की जांच करना और उनके बारे में प्रतिवेदन देना कि इस प्रकार के आश्वासन आदि कहां तक क्रियान्वित किए गए हैं और यह भी देखना कि क्या उन्हें इस प्रयोजन के लिए अपेक्षित कम से कम समय में क्रियान्वित किया गया है।
(10) महिलाओं को शक्तियां प्रदान करने संबंधी समिति
मंत्रियों द्वारा सभा पटल पर रखे गए सभी पत्रों (उन पत्रों को छोड़कर जो अधीनस्थ विधान संबंधी समिति अथवा किसी अन्य संसदीय समिति के कार्य-क्षेत्र के अंतर्गत आते हों) की जांच करना और सभा को यह प्रतिवेदन प्रस्तुत करना कि (क) क्या संविधान, अधिनियम, नियम अथवा विनियम के उन उपबंधों का पालन हुआ है, जिनके अधीन वह पत्र सभा पटल पर रखा गया है; (ख) क्या पत्र को सभा पटल पर रखने में कोई अनुचित विलंब हुआ है; (ग) यदि ऐसा विलंब हुआ है तो क्या उक्त विलंब के कारणों को स्पष्ट करने वाला विवरण भी सभा पटल पर रखा गया है तथा क्या वे कारण संतोषजनक हैं; (घ) क्या उस पत्र के हिन्दी तथा अंग्रेजी दोनों संस्करण सभा पटल पर रखे गए हैं; (ङ) क्या हिन्दी संस्करण सभा पटल पर न रखने के कारणों को स्पष्ट करने वाला विवरण सभा पटल पर रखा गया है, तथा क्या वे कारण संतोषजनक हैं; और (च) सभा पटल पर रखे गए पत्रों संबंधी ऐसे अन्य कार्य भी करना, जो अध्यक्ष द्वारा समय-समय पर इस समिति को सौंपे जाएंगे।
(11) याचिका समिति
सभा को प्रस्तुत की गयी याचिकाओं पर विचार करना और प्रतिवेदन प्रस्तुत करना। विभिन्न व्यक्तियों, संस्थाओं आदि के उन अभ्यावेदनों, जो याचिका संबंधी नियमों के अंतर्गत नहीं आते हैं, पर भी विचार करना और उन्हें निपटाने के लिए निदेश देना।
(12) गैर-सरकारी सदस्यों के विधेयकों तथा संकल्पों संबंधी समिति
गैर-सरकारी सदस्यों के विधेयकों तथा संकल्पों के लिए समय नियत करना, संविधान में संशोधन करने वाले गैर-सरकारी सदस्यों के विधेयकों की लोक सभा में उनको पेश किए जाने से पहले जांच करना और गैर-सरकारी सदस्यों के ऐसे विधेयकों, जिनमें सभा की विधायी क्षमता को चुनौती दी गयी हो, की भी जांच करना।
(13) अधीनस्थ विधान संबंधी समिति
इस बात की जांच करना और सभा को प्रतिवेदन देना कि क्या विनियम, नियम, उपनियम, उपविधि आदि बनाने के लिए संविधान द्वारा प्रदत्त अथवा संसद द्वारा प्रत्यायोजित शक्तियों का प्रयोग कार्यपालिका द्वारा उस प्रत्यायोजन के अंतर्गत समुचित रूप से किया जा रहा है।
(14) सामान्य प्रयोजनों संबंधी समिति
अध्यक्ष को सभा के कार्यों से संबंधित उन मामलों के बारे में सलाह देना, जो उसे अध्यक्ष द्वारा समय-समय पर सौंपे जाते हैं।
(15) आवास समिति
लोक सभा के सदस्यों के आवास से संबंधित सभी प्रश्नों पर विचार करना तथा दिल्ली में सदस्यों के निवास स्थानों तथा होस्टलों में उपलब्ध करायी गयी आवास, खाद्य, चिकित्सा सहायता आदि संबंधी सुविधाओं तथा अन्य सुख-सुविधाओं की देख-रेख करना।
(16) लाभ के पदों संबंधी संयुक्त समिति
केंद्र सरकार तथा राज्य सरकारों द्वारा नियुक्त समितियों के गठन और स्वरूप की जांच करना और यह सिफारिश करना कि कोई व्यक्ति संसद की किसी एक सभा का सदस्य चुने जाने तथा उसका सदस्य बने रहने के लिए संविधान के अनुच्छेद 102 के अंतर्गत किन पदों को धारण करने से ‘अनर्ह’ होना चाहिए और किन पदों को धारण करने से ‘अनर्ह’ नहीं होना चाहिए। संसद (निरर्हता निवारण) अधिनियम, 1959 की अनुसूची की भी समय-समय पर जांच करना और उक्त अनुसूची में कोई परिवर्द्धन अथवा लोप करके या अन्यथा किन्हीं संशोधनों की सिफारिश करना।
(17) संसद सदस्यों के वेतन तथा भत्ते संबंधी संयुक्त समिति
केंद्र सरकार के परामर्श से दोनों सदनों के सदस्यों को यात्रा और दैनिक भत्ते, चिकित्सा, आवास, टेलीफोन, डाक, पानी, बिजली, निर्वाचन क्षेत्र संबंधी तथा सचिवालयीय सुविधाएं आदि देने के बारे में नियम बनाना।
(18) ग्रंथालय समिति
ग्रंथालय से संबंधित ऐसे मामलों पर विचार करना तथा सलाह देना जो अध्यक्ष द्वारा समय-समय पर इसे भेजे जाए। ग्रंथालय में सुधार हेतु सुझावों पर विचार भी करना तथा ग्रंथालय द्वारा प्रदान की जा रही सेवाओं का सभा के दोनों सदनों के सदस्यों द्वारा पूरी तरह उपयोग करने के लिए सदस्यों की सहायता करना।
(19) नियम समिति
लोक सभा में प्रक्रिया तथा कार्य संचालन के नियमों पर विचार करना तथा इन नियमों में ऐसे संशोधनों तथा परिवर्धनों की सिफारिश करना जो आवश्यक समझे जाएं।
(20) अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के कल्याण संबंधी समिति
(क) संविधान के अनु. 338(5)(घ) तथा 338क (5) (घ) के अंतर्गत (राष्ट्रीय अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग) द्वारा पेश किए गए प्रतिवेदनों पर विचार करना और संघ सरकार, जिसमें संघ राज्य क्षेत्रों के प्रशासन भी शामिल हैं, के क्षेत्राधिकार के अंदर आने वाले मामलों के बारे में संघ सरकार द्वारा किए जाने वाले उपायों को प्रतिवेदित करना; (ख) समिति द्वारा प्रस्तावित उपायों पर संघ सरकार और संघ राज्य क्षेत्रों के प्रशासनों द्वारा की गयी कार्यवाही प्रतिवेदन प्रस्तुत करना; (ग) अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों का विधिवत प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए अनु. 335 के उपबंधों को दृष्टि में रखते हुए संघ सरकार के नियंत्रणाधीन सेवाओं तथा पदों में (जिनमें सरकारी क्षेत्र के उपक्रमों, संविहित और अर्द्ध सरकारी निकायों तथा संघ-राज्य क्षेत्रों में नियुक्तियां भी शामिल हैं) संघ सरकार द्वारा किए गए उपायों पर विचार करना; (घ) संघ राज्य क्षेत्रों में अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के कल्याण संबंधी कार्यक्रमों के कार्यकरण के बारे में प्रतिवेदन करना; और (ङ) ऐसे अन्य मामलों पर विचार करना जो समिति उचित समझे या जो सदन अथवा अध्यक्ष द्वारा उसे विशेष रूप से निर्दिष्ट किए जाएं।
(21) रेल अभिसमय समिति
रेल उपक्रम द्वारा सामान्य राजस्व से देय लाभांश की दर तथा सामान्य वित्त की तुलना में रेल वित्त से संबंधित अन्य अनुषंगी मामलों की पुनरीक्षा करती है और उन पर सिफारिशें देती हैं। यह रेल की विभिन्न निधियों जैसे कि मूल्यह़ास आरक्षित निधि, विकास निधि, पूंजीगत निधि, पेंशन निधि आदि के विनियोजन के लिए भी सुझाव देती है। सभा या अध्यक्ष समिति को रेल या रेल वित्त से संबंधित लोक महत्व के तदर्थ मामले भी भेज सकता है। 1949, 1954, 1960 तथा 1965 की रेल अभिसमय समितियों ने अगले पांच वर्षों के दौरान रेलवे द्वारा देय लाभांश की दर निर्धारित करने के विषय तक ही अपने आपको सीमित रखा। 1971 से रेलवे द्वारा सामान्य राजस्व को देय लाभांश की दर की सिफारिश करने के अलावा, रेल अभिसमय समितियां ऐसे विषयों की उनकी जांच के लिए तथा उन पर प्रतिवेदन प्रस्तुत करने के लिए भी लेती आयी हैं जिनका रेलवे तथा रेल वित्त के कार्यचालन पर प्रभाव होता है।
(22) संसद सदस्यों तथा लोक सभा सचिवालय के अधिकारियों हेतु कंप्यूटर का प्रावधान करने वाली समिति
सदस्यों को कंप्यूटर की आपूर्ति करने के संबंध में अध्यक्ष को सलाह देना।
(23) संसद सदस्य स्थानीय क्षेत्र विकास योजना संबंधी समिति
(क) संसद सदस्य स्थानीय क्षेत्र विकास योजना (लोक सभा) का कार्यनिष्पादन तथा क्रियान्वयन में आ रही समस्याओं की सावधिक निगरानी तथा पुनरीक्षा; (ख) योजना के संबंध में लोक सभा के सदस्यों की शिकायतों पर विचार करना; तथा संसद सदस्य स्थानीय क्षेत्र विकास योजना के संबंध में ऐसे कार्य करना जो इसे समय-समय पर अध्यक्ष द्वारा दिए जाए।
(24) आचार संबंधी समिति
(क) सदस्यों के नैतिक तथा सदाचार व्यवहार की निगरानी रखना; (ख) सदस्य के अनैतिक व्यवहार के संबंध में अथवा उसके संसदीय व्यवहार से संबंधित की गयी प्रत्येक शिकायत की जांच करना तथा उपयुक्त समझी जाने वाली सिफारिशें करना; (ग) ऐसे नियम बनाना जो यह विनिर्दिष्ट करते हों कि अनैतिक आचार क्या है। समिति जहां भी आवश्यक समझे, सदस्य के अनैतिक व्यवहार से संबंधित मामलों सहित आचार संबंधी मामलों पर स्वप्रेरणा से विचार कर सकती है तथा उनकी जांच कर सकती हैं और उपयुक्त समझी जाने वाली सिफारिशें कर सकती है। इस समिति द्वारा सदस्य के अनैतिक व्यवहार की जांच करने के लिए वही प्रक्रिया अपनायी जाएगी जो सभा या सदस्य के विशेषाधिकार उल्लंघन से संबंधित किसी प्रश्न के बारे में अपनायी जाती है। सभा में प्रस्तुत विशेषाधिकार समिति के प्रतिवेदन पर विचार करने और सभा द्वारा ऐसे प्रतिवेदनों पर विचार करने की प्राथमिकता से संबंधित नियम 315 एवं 316 के उपबंध सभा में प्रस्तुत आचार समिति के प्रतिवेदनों पर भी आवश्यक परिवर्तनों सहित लागू होंगे।
(25) संसद भवन परिसर में खाद्य प्रबंधन संबंधी समिति
(क) संसद भवन परिसर में स्थित रेलवे खान-पान इकाइयों द्वारा उपलब्ध कराए जाने वाले खाद्य पदार्थों की दरों में संशोधन; (ख) संसद भवन परिसर में रेलवे खानपान इकाई चलाने के लिए दी जाने वाली राजसहायता; (ग) सदस्यों को उत्कृष्ट कैंटीन सेवा का प्रावधान तथा (घ) अन्य संबंधित मुद्दों पर विचार करना।
(26) राष्ट्रीय नेताओं तथा संसद सदस्यों की तस्वीर/प्रतिमा स्थापित किए जाने संबंधी समिति
(क) केंद्रीय कक्ष में, यदि जगह उपलब्ध है तथा यदि जगह उपलब्ध नहीं है तो संसद भवन परिसर में अन्य किसी स्थान पर राष्ट्रीय नेताओं/संसद सदस्यों की तस्वीर लगाए जाने के प्रस्ताव पर; (ख) संसद भवन तथा संसद भवन परिसर के किसी अन्य भाग में राष्ट्रीय नेताओं/संसद सदस्यों की प्रतिमाओं के बारे में; (ग) बाहरी संगठनों तथा व्यक्तियों से तस्वीर तथा प्रतिमा की स्वीकृति के बारे में; (घ) जिन स्थानों पर तस्वीर तथा प्रतिमाएं लगायी जा सकती हैं; उनके बारे में; और (ङ) अन्य कोई कदम उठाए जाने के बारे में जिससे कि संसद भवन परिसर और अधिक आकर्षक तथा दर्शनीय लगे, के बारे में निर्णय करना।
(27) संसद भवन परिसर में सुरक्षा संबंधी समिति
(क) संसद भवन परिसर में, विशेषकर 13वीं लोक सभा के दौरान संयुक्त संसदीय समिति द्वारा की गयी सिफारिशों के संदर्भ में सुरक्षा उपकरण स्थापित करने से संबंधित कार्य की प्रगति की समीक्षा (ख) विचार करने/निर्णय लेने के लिए लंबित सुरक्षा पहलुओं पर विचार करना; तथा (ग) संसद की सुरक्षा के संबंध में एक व्यापक प्रतिवेदन तैयार करना जिसमें संभावित खतरों तथा भविष्य के संभावित परिदृश्य के मद्देनजर उनसे निपटने के लिए कदम उठाए गए हों।
(28) लाभ के पद से संबंधित संवैधानिक और कानूनी स्थिति की जांच करने संबंधी समिति
यह समिति लोक सभा सदस्यों के कदाचार ओर उनके द्वारा संसदीय विशेषाधिकार और सुविधाओं का दुरूपयोग करने के मामलों, जिनके बारे में लोक सभा अध्यक्ष से समय-समय पर मामले प्राप्त होते हैं, की जांच करती है और प्रत्येक मामले में, यदि कोई हो, तो कार्यवाही की सिफारिश करती है और इसे अध्यक्ष को प्रस्तुत करती है। साथ ही, यदि समिति उपयुक्त समझती है तो इस बात पर भी गौर करती है कि किसी सदस्य के किन-किन कृत्यों को कदाचार माना जाए और ऐसे कदाचार के मामलों में की जाने वाले कार्यवाही के बारे में उचित सिफारिश करती है।
(29) लोक सभा सदस्यों के कदाचार की जांच समिति संबंधी समिति
यह समिति लोक सभा सदस्यों के कदाचार और उनके द्वारा संसदीय विशेषाधिकार और सुविधाओं का दुरूपयोग करने के मामलों, जिनके बारे में लोक सभा अध्यक्ष से समय-समय पर मामले प्राप्त होते हैं, की जांच करती है और प्रत्येक मामले में, यदि कोई हो, तो कार्यवाही की सिफारिश करती हैं और इसे अध्यक्ष को प्रस्तुत करती है। साथ ही, यदि समिति उपयुक्त समझती है तो इस बात पर भी गौर करती है कि किसी सदस्य के किन-किन कृत्यों को कदाचार माना जाए और ऐसे कदाचार के मामलों में की जाने वाले कार्यवाही के बारे में उचित सिफारिश करती है। समिति विधि के सुस्थापित सिद्धांतों और नैसर्गिक न्याय के अनुरूप अपनी स्वयं की प्रक्रिया अपनाने के लिए प्राधिकृत है। समिति, आम तौर पर अध्यक्ष द्वारा किसी मामले को भेजे जाने के एक महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने का प्रयास करती है।
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